यह श्लोक भगवद गीता, अध्याय 6, श्लोक 24 से है। यह संस्कृत में लिखा गया है और हिंदी में इसका अनुवाद इस प्रकार है:
सङ्कल्पप्रभवान्कामांस्त्यक्त्वा सर्वानशेषत: |
मनसैवेन्द्रियग्रामं विनियम्य समन्तत: || 24||
"सभी संकल्पों और इच्छाओं से उत्पन्न कामनाओं को पूरी तरह से त्यागकर, मन द्वारा सभी इन्द्रियों को हर दिशा में नियंत्रित करें।"
इस श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण योग साधना के एक अत्यंत महत्वपूर्ण तत्व पर प्रकाश डालते हैं, जिसे "इन्द्रियों और इच्छाओं का नियंत्रण" कहा जाता है। भगवान कहते हैं कि हमारे मन से उत्पन्न इच्छाएँ और संकल्प ही जीवन में कष्ट का मूल कारण होते हैं। इन इच्छाओं को पूरी तरह त्यागना ही योग की दिशा में पहला कदम है।
सङ्कल्पप्रभवान्: संकल्पों (इच्छाओं) से उत्पन्न।
कामान्: इच्छाओं (भौतिक कामनाओं) को।
त्यक्त्वा: त्यागकर, छोड़कर।
सर्वान्: सभी।
अशेषत:: संपूर्ण रूप से, बिना किसी अवशेष के।
मनसा: मन द्वारा।
एव: ही, केवल।
इन्द्रियग्रामम्: इन्द्रियों के समूह (सभी इन्द्रियों) को।
विनियम्य: नियंत्रित करके।
समन्तत:: सभी दिशाओं से, हर तरह से।