भगवद गीता में भगवान कृष्ण ने अर्जुन को अनेक महत्वपूर्ण जीवन पाठ सिखाए हैं, जिनमें से एक सबसे महत्वपूर्ण सलाह है वर्तमान क्षण पर ध्यान केंद्रित करना। यह सलाह न केवल अर्जुन के युद्धक्षेत्र में महत्वपूर्ण थी, बल्कि यह आज के समय में भी हर व्यक्ति के लिए अत्यधिक प्रासंगिक है। आधुनिक जीवन की जटिलताओं, चिंताओं और तनावों से मुक्त होने के लिए वर्तमान क्षण में जीना एक अद्भुत समाधान हो सकता है।
भगवान कृष्ण ने गीता में कहा है, "कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन" (भगवद गीता 2.47), जिसका अर्थ है कि तुम्हारा अधिकार केवल कर्म पर है, फल पर नहीं। यह बात वर्तमान क्षण पर ध्यान केंद्रित करने की सबसे बुनियादी शिक्षा है। यदि हम भविष्य के परिणामों की चिंता करते रहते हैं, तो हमारा ध्यान भटक जाता है और हम वर्तमान क्षण में पूरी तरह से उपस्थित नहीं रह पाते। कृष्ण सिखाते हैं कि हमें अपने कर्तव्यों पर ध्यान देना चाहिए और परिणाम की चिंता छोड़ देनी चाहिए, जिससे हमारा मन स्थिर रहता है।
भगवान कृष्ण बार-बार बताते हैं कि हमें आसक्ति से मुक्त होना चाहिए। अक्सर हम भविष्य की आकांक्षाओं या भूतकाल के पछतावे में खो जाते हैं, जिससे वर्तमान पर हमारा ध्यान केंद्रित नहीं हो पाता। भगवान कहते हैं, "नासक्ति" (आसक्ति का त्याग) का अर्थ है कि हमें किसी भी वस्तु, व्यक्ति या परिणाम से जुड़ाव नहीं रखना चाहिए। जब हम आसक्ति छोड़ देते हैं, तो हमारा ध्यान स्वाभाविक रूप से वर्तमान क्षण पर केंद्रित हो जाता है।
भगवान कृष्ण गीता में कहते हैं, "उद्धरेदात्मनात्मानं" (गीता 6.5), अर्थात व्यक्ति को स्वयं के मन को नियंत्रित करना चाहिए। वर्तमान क्षण में जीने के लिए सबसे आवश्यक है कि हम अपने मन पर नियंत्रण रखें। मन भटकने की स्वाभाविक प्रवृत्ति रखता है, और यदि इसे नियंत्रित न किया जाए, तो यह भूतकाल और भविष्य में भटकता रहेगा। योग और ध्यान की प्रक्रिया से भगवान हमें सिखाते हैं कि अपने मन को कैसे स्थिर रखें और इसे वर्तमान क्षण में कैसे टिकाएँ।
वर्तमान क्षण में ध्यान केंद्रित करने का एक और तरीका श्वास पर ध्यान देना है। भगवान कृष्ण योग और ध्यान का विशेष महत्व बताते हैं। जब हम अपनी श्वास पर ध्यान केंद्रित करते हैं, तो हमारा मन भूत और भविष्य से हटकर वर्तमान क्षण में आ जाता है। योग और ध्यान के अभ्यास से हम अपने मन को शांत कर सकते हैं और इसे वर्तमान में स्थिर कर सकते हैं।
भगवान कृष्ण का एक और महत्वपूर्ण उपदेश है, "स्वधर्मे निधनं श्रेयः" (गीता 3.35), जिसका अर्थ है कि हमें अपने धर्म, अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए। जब हम अपने कर्तव्यों पर ध्यान देते हैं और उसे पूरी निष्ठा से निभाते हैं, तो हमारा ध्यान स्वाभाविक रूप से वर्तमान क्षण पर केंद्रित हो जाता है। इससे हम भूतकाल की चिंता या भविष्य की असुरक्षा से मुक्त हो जाते हैं।
भगवान कृष्ण बताते हैं कि सुख-दुख, हानि-लाभ, और सफलता-असफलता को समान दृष्टि से देखना चाहिए। जब हम इन द्वंद्वों से मुक्त हो जाते हैं, तो हम बिना किसी मानसिक अवरोध के वर्तमान में जी सकते हैं। भगवान कृष्ण कहते हैं, "समत्वं योग उच्यते" (गीता 2.48), अर्थात समभाव को ही योग कहा जाता है। जब हम किसी भी परिस्थिति में समता बनाए रखते हैं, तो हम वर्तमान क्षण में पूरी तरह से उपस्थित रहते हैं।
भगवान कृष्ण बताते हैं कि ज्ञान और ध्यान का अभ्यास वर्तमान क्षण में जीने का सबसे प्रभावी तरीका है। ध्यान हमें अपनी भीतरी चेतना से जोड़ता है और हमें भटकाव से मुक्त करता है। इसके अलावा, आत्म-ज्ञान हमें यह सिखाता है कि हमारे जीवन का असली उद्देश्य क्या है। जब हम इस ज्ञान को समझ लेते हैं, तो हमारा मन भूत और भविष्य से हटकर वर्तमान पर केंद्रित हो जाता है।
भगवान कृष्ण की शिक्षाएँ हमें सिखाती है कि वर्तमान क्षण में जीना ही जीवन का सबसे बड़ा सुख और शांति है। जब हम वर्तमान पर ध्यान केंद्रित करते हैं, तो न केवल हमारा जीवन अधिक अर्थपूर्ण हो जाता है, बल्कि हम मानसिक शांति और संतुलन भी प्राप्त करते हैं। हमें भूतकाल के पछतावे और भविष्य की चिंताओं से मुक्त होकर कर्मयोग, ध्यान, और स्वधर्म का पालन करते हुए वर्तमान क्षण का पूरा आनंद लेना चाहिए। यही भगवान कृष्ण का उपदेश है, जो हमें एक संतुलित, शांतिपूर्ण और समृद्ध जीवन की ओर ले जाता है।