कामक्रोधवियुक्तानां यतीनां यतचेतसाम्।
अभितो ब्रह्मनिर्वाणं वर्तते विदितात्मनाम् ॥26॥
अर्थ: ऐसे संन्यासी भी जो सतत प्रयास से क्रोध और काम वासनाओं पर विजय पा लेते हैं एवं जो अपने मन को वश में कर आत्मलीन हो जाते हैं, वे इस जन्म में और परलोक में भी माया शक्ति के बंधनों से मुक्त हो जाते हैं।
काम-इच्छाएँ;
क्रोध-क्रोध;
वियुक्तानाम् - वे जो मुक्त हैं;
यतीनाम्-संत महापुरुष;
यत-चेतसाम्-आत्मलीन और मन पर नियंत्रण रखने वाला;
अभितः-सभी ओर से;
ब्रह्म-आध्यात्मिक;
निर्वाणम्-भौतिक जीवन से मुक्ति;
वर्तते-होती है
विदित-आत्मनाम्-वे जो आत्मलीन हैं।