स्पर्शान्कृत्वा बहिर्बाह्यांश्चक्षुश्चैवान्तरे भ्रुवोः।
प्राणापानौ समौ कृत्वा नासाभ्यन्तरचारिणौ ॥27॥
अर्थ: बाह्य इन्द्रिय-विषयों को बाहर रखना और नेत्रों को भौहों के बीच में रखना, और साथ ही नासिका के भीतर श्वास के आने-जाने के प्रवाह को बराबर करना;
स्पर्शान-इन्द्रिय विषयों से सम्पर्क;
कृत्वा-करना;
बहिः-बाहरी;
बाह्यान्–बाहरी विषय;
चक्षुः-आंखें;
च - और;
एव–निश्चय ही;
अन्तरे-मध्य में;
भ्रवोः-आंखों की भौहों के;
प्राण-अपानो-बाहरी और भीतरी श्वास;
समौ-समान;
कृत्वा-करना;
नास-अभ्यन्तर-नासिका छिद्रों के भीतर;
चारिणौ-गतिशील;