मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष की दशमी को दत्तात्रेय जयन्ती मनाई जाती है। भगवान दत्तात्रेय, महर्षि अत्रि और माता अनुसूया के पुत्र थे। महर्षि अत्रि सप्तऋषियों में से एक है, और माता अनुसूया को सतीत्व के प्रतिमान के रूप में उदधृत किया जाता है। भगवान दत्तातेय को ब्रह्मा, विष्णु और महेश का अवतार माना जाता है। ऐसा कहा जायें कि ये त्रिदेवों के अंश माने जाते हैं। पुराणों के अनुसार दत्तात्रेय के तीन सिर व छः भुजाएँ थीं। दत्तात्रेय अपनी बहुज्ञता के कारण पौराणिक इतिहास में विख्यात हैं। इनके जन्म की कथा बड़ी विचित्र है।
तीनो ईश्वरीय शक्तियों से समाहित महाराज दत्तात्रेय की आराधना बहुत ही सफल और जल्दी से फल देने वाली है। महाराज दत्तात्रेय आजन्म ब्रह्मचारी, अवधूत और दिगम्बर रहे थे। वे सर्वव्यापी है और किसी प्रकार के संकट में बहुत जल्दी से भक्त की सुध लेने वाले हैं, अगर मानसिक, या कर्म से या वाणी से महाराज दत्तात्रेय की उपासना की जाये तो भक्त किसी भी कठिनाई से शीघ्र दूर हो जाते हैं।
आदौ ब्रह्मा मध्ये विष्णुरन्ते देवः सदाशिवः
मूर्तित्रयस्वरूपाय दत्तात्रेयाय नमोस्तु ते।
ब्रह्मज्ञानमयी मुद्रा वस्त्रे चाकाशभूतले
प्रज्ञानघनबोधाय दत्तात्रेयाय नमोस्तु ते।।
भावार्थ - जो आदि में ब्रह्मा, मध्य में विष्णु तथा अन्त में सदाशिव है, उन भगवान दत्तात्रेय को बारम्बार नमस्कार है। ब्रह्मज्ञान जिनकी मुद्रा है, आकाश और भूतल जिनके वस्त्र है तथा जो साकार प्रज्ञानघन स्वरूप है, उन भगवान दत्तात्रेय को बारम्बार नमस्कार है। (जगद्गुरु श्री आदि शंकराचार्य)
भगवान दत्तात्रेय से एक बार राजा यदु ने उनके गुरु का नाम पूछा,भगवान दत्तात्रेय ने कहा : "आत्मा ही मेरा गुरु है,तथापि मैंने चौबीस व्यक्तियों से गुरु मानकर शिक्षा ग्रहण की है।"
१) पृथ्वी, २) जल, ३) वायु, ४) अग्नि, ५) आकाश, ६) सूर्य, ७) चन्द्रमा, ८) समुद्र, ९) अजगर, १०) कपोत, ११) पतंगा, १२) मछली, १३) हिरण, १४) हाथी, १५) मधुमक्खी, १६) शहद निकालने वाला, १७) कुरर पक्षी, १८) कुमारी कन्या, १९) सर्प, २०) बालक, २१) पिंगला वैश्या, २२) बाण बनाने वाला, २३) मकड़ी, २४) भृंगी कीट
एक बार नारद मुनि, भगवान शंकर, विष्णु और ब्रह्माजी से मिलने स्वर्ग लोग गये। परन्तु उनकी भेंट त्रिदेवों में से किसी से न हो सकी। उनकी भेंट त्रिदेवों की पत्नियों पार्वती, लक्ष्मी एवं सरस्वती जी से हो गई। नारदजी ने तीनों का घमण्ड तोड़ने के लिए कहा कि मैं विश्वभर का भ्रमण करता रहता हूँ। परन्तु अत्रि ऋषि की पत्नी अनुसूइया के समान पतिव्रत धर्मपत्नी, शील एवं सद्गुण सम्पन्न स्त्री मैंने नहीं देखी। आप तीनों देवियाँ भी पतिव्रत धर्म पालन में उनसे पीछे हैं। यह सुनकर उनके अहम् को बड़ी ठेस लगी क्योंकि वे समझती थीं कि हमारे समान पतिव्रता स्त्री संसार में नहीं है।
नरदजी के चले जाने के बाद तीनों देवियों ने अपने अपने देवों से सती अनुसूइया का पतिव्रत धर्म नष्ट करने का आग्रह किया। संयोगवश त्रिदेव एक ही समय अत्रि मुनि के आश्रम पर पहुँचें। तीनों देवों का एक ही उद्देश्य था। अनुसूइया का पतिधर्म नष्ट करना। तीनों ने मिलकर योजना बना डाली। तीनों देवों ने ऋषियों का वेष धारण कर अनुसूइया से भिक्षा माँगी। भिक्षा में उन्होंने भोजन करने की इच्छा प्रकट की।
अतिथि सत्कार को अपना धर्म समझने वाली अनुसूइया ने कहा आप स्नान आदि से निवृत्त होकर आइए तब तक मैं आपके लिए रसोई तैयार करती हूँ।
तीनों देव स्नान करके आए तो अनुसूइया ने उन्हें आसन ग्रहण करने को कहा। इस पर तीनों दवे बोले हम तभी आसन ग्रहण कर सकते हैं जब तुम प्राकृतिक अवस्था में बिना कपड़ों के हमें भोजन कराओगी।
अनुसूइया के तब बदन में आग लग गई परन्तु पतिव्रत धर्म के कारण वह त्रिदेवों की चाल समझ गई।
अनुसूइया ने अत्रि ऋषि के चरणोदक को त्रिदेवों के ऊपर छिड़क दिया और कहा कि यदि मेरी पतिव्रत धर्म पवित्र है तो ये तीनों छोटे बालकों के रूप में बदल जाये। तब तीनों देवों की शर्त के मुताबिक अनुसूइया ने भोजन कराया तथा पालने पर अलग-अलग उन्हें झुलाने लगीं।
काफी समय बीत जाने पर भी जब त्रिदेव नहीं लौटे तो त्रिदेवियों को चिन्ता होने लगी। त्रिदेवियाँ त्रिदेवों को खोजती हुई अत्रि ऋषि के आश्रम में पहुँची और सती अनुसूइया से त्रिदेवों के बारे में जानकारी करने लगीं। अनुसूइया ने पालनों की ओर इंगित करके कहा कि तुम्हारे देव पालनों में आराम कर रहे हैं। अपने अपने देव का पहचाल लो परन्तु तीनों के चेहरे एक से होने कारण वे न पहचान सकीं। लक्ष्मीजी ने बहुत चालाकी से विष्णु को पालने से उठाया तो वे शंकर निकले, उस पर उनको बड़ा उपहास सहना पड़ा।
तीनों देवियों के अनुनय विनय करने पर अनुसूइया ने कहा कि इन तीनों ने मेरा दूध पिया है। इसलिए इन्हें किसी न किसी रूप में मेरे पास रहना होगा।
इस पर त्रिदेवों के अंश के एक विशिष्ट बालक का जन्म हुआ जिसके तीन सिर तथा छः भुजाएँ थीं। यही बालक बड़ा होकर दत्तातेय ऋषि कहलाए।
अनुसूइया ने पुनः पित चरणोदक से त्रिदेवों को पूर्ववत कर दिया।