खीर भवानी मंदिर एक हिन्दू मंदिर है जो कि भारत के राज्य जम्मू-कश्मीर के तुलमूल गांव के पास स्थित है। कश्मीर के हिन्दूओं के लिए, जिनको कश्मीरी हिन्दू भी कहा जाता है, यह मंदिर उनके के लिए सबसे महत्वपूर्ण मंदिर है। कश्मीरी हिन्दू, खीर देवी को कुलदेवी के रूप में पूजा करते है। वे मानते है कि देवी उनकी सरक्षण करती है। यह मंदिर श्रीनगर से लगभग 24 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह मंदिर खीर भवानी और क्षीर भवानी के नाम से प्रसिद्ध है। मंदिर के देवी को कई नामों से पूजा जाता है, जैसे - महाराजा देवी, रागनी देवी, रजनी देवी, रागनी भगवती आदि।
खीर भवानी मंदिर में देवी को खीर का प्रसाद चढ़ाया जाता है। खीर चावल और दूध के मिश्रण से बनाई जाती है। इसलिए इस मंदिर का नाम खीर जुड़ा हुआ है।
यह मंदिर एक पवित्र झरने पर निर्मित है। ऐसा माना जाता है कि इस झरने का पानी जब काला हो जाता है तो यह रहने वाले लोगों के लिए अशुभ संकेत माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि जब वर्ष 2014 में कश्मीर में बाढ़ आई थी तो इस झरने का पानी काला पड़ गया था।
मंदिर से जुड़ी एक पौराणिक कथा भी है, ऐसा माना जाता है कि खीर देवी, रावण की नगरी लंका में रहती थी और रावण की भक्ति से प्रसन्न थी। परन्तु रावण द्वारा सीता माता का अपहरण करने से खीर देवी नाराज हो गई थी इसलिए माता लंका में नही रहना चाहती थी। तब माता ने श्रीराम भक्त हनुमान जी को उनकी मूर्ति को तुलमूल गांव में स्थापित करने का निर्देश दिया था। कश्मीर में माता को त्रिपुरासुंदरी व वैष्णव के रूप में पूजा जाता है जबकि श्रीलंका में देवी का श्यामा कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि रावण ने देवी की पूजा के बाद, उसे खीर अर्पित किया, जिसे उसने स्वीकार किया और तब से इसे खीर भवानी कहा जाता है।
महारगिनी दुर्गा भगवती का रूप है। कश्मीर के ब्राह्मण इस झरने की पूजा करते हैं और देश के हर आने-जाने वाले तीर्थयात्रियों के पास इस स्थान के दर्शन होते हैं। स्वामी राम तीर्थ और स्वामी विवेकानंद भी यहां दर्शन के लिए गए थे।
1920 में मंदिर को पुननिर्माण किया गया था। कुछ लोगों की राय है कि खीर भवानी के पवित्र स्थान के पास एक शहतूत का पेड़ था, जिसे स्थानीय भाषा में टुल मूल कहा जाता है। लेकिन तुल मूल शब्द भी संस्कृत शब्द अतुल्य मूल से लिया गया है जिसका अर्थ है महान मूल्य। नवरात्री त्योहार के दौरान, मंदिर में भक्त देवी के दर्शन हेतु बड़ी संख्या में आते है।