यह व्रत कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी को रखा जाता है। इस एकादशी को रम्भा या रमा एकादशी कहा जाता है। विवाहिता स्त्रियों के लिए यह व्रत सभाग्य देने वाला और सुख प्रदान करने वाला कहा गया है। इस दिन भगवान कृष्ण का सम्पूर्ण वस्तुओं से पूजन, नैवेद्य तथा आरती कर प्रसाद वितरित करें। द्वादशी तिथि को ब्रह्मण को भोजन कराकर एवं दक्षिणा देकर विदा करें फिर व्रती को अन्न ग्रहण करना चाहिए।
रमा एकादशी एक पवित्र हिंदू उपवास दिवस है जो भगवान राम को समर्पित है, जो भगवान विष्णु के अवतारों में से एक हैं। यह हिंदू चंद्र माह कार्तिक के शुक्ल पक्ष (शुक्ल पक्ष) के 11वें दिन (एकादशी) को पड़ता है, जो आमतौर पर ग्रेगोरियन कैलेंडर के अक्टूबर या नवंबर में होता है। इस दिन को श्रद्धालु हिंदुओं द्वारा भगवान राम का आशीर्वाद पाने और उपवास और प्रार्थना के माध्यम से मन और शरीर को शुद्ध करने के तरीके के रूप में मनाया जाता है।
रमा एकादशी का महत्व इसलिए है क्योंकि ऐसा माना जाता है कि यह भक्तों के दिलों को शुद्ध करने, पिछले पापों के लिए क्षमा मांगने और भगवान राम के प्रति उनकी भक्ति को बढ़ाने में मदद करती है। यह आत्म-अनुशासन, आध्यात्मिक चिंतन और ईश्वर के प्रति समर्पण का अवसर है। माना जाता है कि रमा एकादशी का ईमानदारी से पालन करने से व्यक्ति के जीवन में शांति, खुशी और आध्यात्मिक उन्नति होती है।
पुराने समय में मुचुकुन्द नाम का दानी, धर्मात्म राजा था। वह प्रत्येक एकादशी का व्रत करता था। राज्य की प्रजा भी उसके देखा देखी प्रत्येक एकादशी का व्रत रखने लगी थी। राजा के चन्द्रभागा नाम की एक पुत्री थी। वह भी एकादशी का व्रत करती थी।
उसका विवाह राजा चन्द्रसेन के पुत्र शोभन के साथ हुआ। शोभन राजा के साथ ही रहता था। इसलिए वह भी एकादशी का व्रत करने लगा। कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी को शोभन ने एकादशी का व्रत रखा परन्तु भूख से व्याकुल होकर मृत्यु को प्राप्त हो गया। इससे राजा, रानी और पुत्री बहुत दुःखी हुए परन्तु एकादशी का व्रत करते रहे।
शोभन को व्रत के प्रभाव से मन्दराचल पर्वत पर स्थित देव नगर में आवास मिला। वहाँ उसकी सेवा में रम्भादि अप्सराएँ तत्पर थीं। अचानक एक दिन मुचुकुन्द मन्दराचल पर्वत पर गये तो वहाँ पर उन्होंने शोभन को देखा। घर आकर उन्होंने सब वृतान्त रानी एवं पुत्री को बताया। पुत्री यह समाचार पाकर पति के पास चली गई तथा दोनों सुखपूर्वक जीवन व्यतीत करने लगे। उनकी सेवा में रम्भादि अप्सराएँ लगीं रहती थीं। इसलिए इस एकादशी को रम्भा एकादशी कहते हैं।
रमा एकादशी शुक्रवार, 17 अक्टूबर 2025 को है। एकादशी 16 अक्टूबर 2025 प्रातः 10:35 बजे से प्रारंभ होकर 17 अक्टूबर 2025 प्रातः 11:12 बजे समाप्त होगी।
एकादशी व्रत 17 अक्टूबर 2025 को हैं। इस दिन भगवान विष्णु के साथ माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है।
रमा एकादशी व्रत में भगवान विष्णु के पूर्णावतार भगवान जी के केशव रूप की विधिवत धूप, दीप, नैवेद्य, पुष्प एवं मौसम के फलों से पूजा की जाती है।