शान्ताकारं भुजंगशयनं - भगवान विष्णु मंत्र

शान्ताकारं भुजंगशयनं पद्मनाभं सुरेशं।
विश्वाधारं गगन सदृशं मेघवर्ण शुभांगम्।
लक्ष्मीकांत कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यं।
वन्दे विष्णु भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम्॥

अर्थ:
यह श्लोक भगवान विष्णु की स्तुति और उनकी महिमा का वर्णन करता है। इसमें भगवान विष्णु के विभिन्न रूपों और गुणों का वर्णन करते हुए उनकी शरण में जाने की प्रार्थना की गई है। श्लोक का अर्थ इस प्रकार है:

  • शान्ताकारं: शांत स्वरूप वाले

    • भगवान विष्णु की मुद्रा अत्यंत शांति से परिपूर्ण है। वे हमेशा शांत रहते हैं, उनकी स्थिति किसी भी विकार से रहित है। उनके चेहरे की शांति देखने वाले के मन को भी शांति देती है।
  • भुजंगशयनं: सर्प शय्या पर सोने वाले

    • भगवान विष्णु सर्पराज अनन्त (शेषनाग) की शय्या पर सोते हैं। शेषनाग का विशाल फन भगवान की शय्या बनता है और उनके विश्राम का स्थान है। यह चित्रण उनकी अद्वितीयता और महिमा को दर्शाता है।
  • पद्मनाभं: जिनकी नाभि से कमल उत्पन्न हुआ है

    • भगवान विष्णु की नाभि से एक दिव्य कमल उत्पन्न हुआ, जिसमें ब्रह्मा जी का जन्म हुआ। इसलिए भगवान को 'पद्मनाभ' कहा जाता है, जो सृष्टि के सृजन के लिए जिम्मेदार हैं।
  • सुरेशं: देवताओं के स्वामी

    • विष्णु देवताओं के स्वामी हैं, वे उनके राजा और रक्षक हैं। सभी देवता उनकी महिमा का गान करते हैं और उनकी शरण में जाते हैं।
  • विश्वाधारं: समस्त विश्व के आधार

    • भगवान विष्णु ही समस्त ब्रह्मांड का आधार हैं। वे संपूर्ण सृष्टि को स्थिर रखते हैं और सभी जीवों को संरक्षण देते हैं। उनके बिना यह सृष्टि अस्थिर हो जाएगी।
  • गगन सदृशं: आकाश के समान अनंत

    • भगवान विष्णु की व्यापकता आकाश के समान है। वे अनंत हैं, उनका कोई आदि-अंत नहीं है। वे सर्वव्यापक हैं, अर्थात सभी जगह उपस्थित हैं।
  • मेघवर्णं: बादलों के समान वर्ण वाले

    • भगवान विष्णु का वर्ण (रंग) बादलों के समान गहरा नीला है। उनका यह रंग उनकी गहनता, गहराई और रहस्यमयीता को दर्शाता है।
  • शुभांगम्: जिनका हर अंग सुंदर है

    • भगवान विष्णु के शरीर का प्रत्येक अंग सुंदर और दिव्य है। उनकी सुंदरता का वर्णन करना कठिन है क्योंकि वह अपार है।
  • लक्ष्मीकांतं: लक्ष्मी जी के प्रिय

    • विष्णु भगवान माता लक्ष्मी के प्रिय पति हैं। माता लक्ष्मी धन, वैभव और समृद्धि की देवी हैं, और भगवान विष्णु के साथ उनका संबंध अमिट और दिव्य है।
  • कमलनयनं: जिनकी आँखें कमल के समान हैं

    • भगवान विष्णु की आँखें कमल के फूल के समान बड़ी, कोमल और सुंदर हैं। उनकी दृष्टि भक्तों को आशीर्वाद देने वाली है।
  • योगिभिर्ध्यानगम्यं: योगियों द्वारा ध्यान में प्राप्त होने योग्य

    • भगवान विष्णु का स्वरूप योगियों के लिए ध्यान का विषय है। योगी ध्यान में जाकर उनकी दिव्यता का अनुभव करते हैं और उनसे एकात्मभाव प्राप्त करते हैं।
  • वन्दे विष्णु भवभयहरं: मैं उन विष्णु की वंदना करता हूँ, जो जन्म और मृत्यु के भय को हरने वाले हैं।

    • इस श्लोक में भगवान विष्णु की वंदना की जाती है, जो संसार के भय और कष्टों को हरने वाले हैं। उनके शरणागत होने से जीवात्मा को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
  • सर्वलोकैकनाथम्: समस्त लोकों के एकमात्र स्वामी

    • भगवान विष्णु समस्त लोकों के स्वामी हैं। वे सभी जीवों के संरक्षक और पालनहार हैं। उनकी कृपा से ही सारा संसार चलता है और वे ही सबसे बड़े संरक्षक हैं।

व्याख्या:
इस श्लोक में भगवान विष्णु की स्तुति की गई है, जिनका स्वरूप शांत और सौम्य है। वे सर्पराज शेषनाग पर विराजमान रहते हैं और उनकी नाभि से ब्रह्मा जी का जन्म हुआ है। विष्णु जी को सृष्टि का आधार माना गया है। उनकी व्यापकता और विस्तार आकाश के समान हैं, और उनका रंग बादलों के समान नीला है।

भगवान विष्णु की सुंदरता अनुपम है और उनकी आँखें कमल के समान कोमल और आकर्षक हैं। लक्ष्मी जी की कृपा भी उन्हीं पर बनी रहती है। योगीजन ध्यान के द्वारा भगवान विष्णु के दिव्य स्वरूप का अनुभव करते हैं। इस श्लोक के अंत में कहा गया है कि भगवान विष्णु ही जन्म और मृत्यु के भय को हरने वाले हैं। वे समस्त लोकों के एकमात्र स्वामी हैं और उनकी वंदना करने से समस्त कष्ट दूर हो जाते हैं।



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