आवड़ माता या हिंगलाज माता जैसलमेर, राजस्थान में भाटी राजवंश की कुल देवी हैं। आवड़ मंदिर भारत के राज्य राजस्थान के जैसलमेर से करीब 130 किमी दूर स्थित माता तनोट राय (आवड़ माता) का मंदिर है। आवड़ माता मंदिर को तनोट माता वा हिंगलाज माता के नाम से भी जाना जाता है। तनोट माता को देवी हिंगलाज माता का एक रूप माना जाता है। हिंगलाज माता शक्तिपीठ वर्तमान में पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत के लासवेला जिले में स्थित है।
भाटी राजपूत नरेश तणुराव ने तनोट को अपनी राजधानी बनाया था। उन्होंने विक्रम संवत 828 में माता तनोट राय का मंदिर बनाकर मूर्ति को स्थापित किया था। भाटी राजवंशी और जैसलमेर के आसपास के इलाके के लोग पीढ़ी दर पीढ़ी तनोट माता की अगाध श्रद्धा के साथ उपासना करते रहे। कालांतर में भाटी राजपूतों ने अपनी राजधानी तनोट से हटाकर जैसलमेर ले गए परंतु मंदिर तनोट में ही रहा। तनोट माता का यह मंदिर यहाँ के स्थानीय निवासियों का एक पूज्यनीय स्थान हमेशा से रहा, परंतु 1965 को भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान जो चमत्कार देवी ने दिखाए, उसके बाद तो भारतीय सैनिकों और सीमा सुरक्षा बल के जवानों की श्रद्धा का विशेष केन्द्र बन गई। भारत पाकिस्तान युद्ध के बाद आवड़ माता मंदिर पूरे भारत प्रसिद्ध हो गया। अब यह मंदिर भारतीय सैनिकों की श्रद्धा का केन्द्र ही नहीं बल्कि माता के भक्तों का विशेष आकर्षण बन गया है।
भाड़ प्रदेश (जैसलमेर-बाड़मेर का भूभाग) निवासी साऊवा शाखा के मामड़ जी चारण द्वारा संतान प्राप्ति हेतु की गई सात पैदल यात्राओं से प्रसन्न माँ हिंगलाज ने प्रकट होकर वर माँगने को कहा। मामड़ जी द्वारा माँ हिंगलाज जैसी संतान प्राप्ति की माँग करने पर माताजी ने सात पुत्रियों के रूप में स्वयं पधारने एवं एक पुत्र होने का वचन दिया। यह नवीं सदी की बात है। वचनानुसार मामड़ जी की धर्मपत्नी मोहवृत्ति मेहडू चारणी की कुक्षि से उय्यटदे (आवड़ जी) का जन्म हुआ, तदुनरान्त लगातार छः पुत्रियाँ तथा एक पुत्र महिरख पैदा हुए। ये सातों बहनें आजीवन ब्रह्माचारिणी रहकर शक्ति अवतार के रूप में पूजनीया हुई। राजस्थान के क्षत्रियों में आवड़जी आदि अनेक चरण लोकदेवियां कुलदेवी के रूप में पूजनीया हैं-
आवड़ तूठी भाटियां, कामेही गौड़ांह।
श्री बिरवड़ सीयोदियां, करनी राठौड़ांह।।
महाशक्ति आवड़जी द्वारा अपने समय के कुख्यात बावन हूण राक्षसों को मार कर आमजन को असुरों के आंतक से मुक्ति दिलाई, इसलिए इनके 52 पवाड़े, 52 मंदिर, 52 ओरण एवं 52 नाम (श्री आई माँ, अब्बटदे, आयल, माड़ैच्यां, गिरवरराय, सऊआणियां, अहियाणियं, पनोधरराय, चाळराय, जाळराय, बिंझासणी, झूमरकेराय, मामडि़यासधू, आशापुरा, श्री आवड़, बाइयां, आईनाथ, मानसरिया, नागणेजी, कतियाणी, भोजासरी, उपरल्यां धणियाणियां, मामड़याई, माढराय, पिनोतणिया, मोतियांळी, डूंगरेच्यां, सहांग्याजी, घंटिलाळी, पारेवरियां, तनोटियां, तनोटराय, भादरियाराय, काले ड़ंगरराय, देगराय, साबड़ामढराय, चेलकराय, माड़ेची, चकरेसी, अनढ़ेची, आरंबाराय, सप्तमातृका, डंूगरराय, छछुन्दरे, तेमड़ाराय, मनरंगथळराय, चालकनाराय, चाळकनेची, जूनी जाळरी धणियाणी, बींझणोटी तथा थळराय) प्रसिद्ध है। ऐसी मान्यता है कि सुद¬ीर्ध जीवनोपरांत आमजन के समक्ष सातों बहिनें तेमड़ा पर्वत की तारंगशिला पर बैठकर माँ हिंगलाज का ध्यान लगाकर पश्चिम की ओर अदृश्य हो गई।
चारण कुल में नवलाख लोवडि़याल अवतार की मान्यता में श्री आवड़ माता को हिंगलाज का पूर्ण तथा अन्य देवियों को अंशावतार माना जाता हैं।
ओम बिहारी यूं अखै, संगत देय सदबुद्ध।
आवड़ रा जो उच्चरै, बावन नाम विशुद्ध।।