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एकलिंग मंदिर एक हिन्दू मंदिर जो कि भगवान शिव का पूर्णतयः समर्पित है। एकलिंग मंदिर भारत के राज्य राजस्थान के जिला उदयपुर में स्थित है। एकलिंग मंदिर उदयपुर से लगभग 22 किलोमीटर उत्तर में दो पहाडि़यों के बीच में स्थित है। उस स्थान का नाम ‘कैलाशपुरी’ है। कैलाशपुरी में भगवान शिव का मंदिर एकलिंग होने कारण, कैलाशपुरी को एकलिंग जी के नाम से जाना जाता है। एकलिंग भगवान शिव, राजस्थान के मेवाड़ राज्य के महाराणाओं तथा अन्य राजपूतो के कुल देवता माने जाते है। एकलिंग मंदिर भारत के महत्वपूर्ण तीर्थ स्थालों में से एक है।
ऐसा माना जाता है कि इस स्थान राजा केवल एकलिंग भगवान के प्रतिनिधि मात्र रूप से शासन किया करते थे। इसकी कारण उदयपुर के महाराणा को दीवाण जी कहा जाता है। राज्य के राजा यदि किसी युद्ध में जाते थे तो पहले एकलिंग जी की पूजा अर्चना अवश्य किया करते थे और भगवान शिव से आर्शीवाद लिया करते थे।
ऐसा भी माना जाता है कि मेवाड़ का राजाओं द्वारा अनेक बार एकलिंग मंदिर में ऐतिहासिक महत्व के प्रण लिया करते थे।
एकलिंग मंदिर के परिसर में कुल 108 मंदिर हैं। मुख्य मंदिर में भगवान शिव की चार मुख वाली 50 फीट की मूर्ति स्थापित है, जिन्हें एकलिंग महाराज कहा जाता है। भगवान शिव के वाहल नंदी जी की एक पीतल की प्रतिमा मुख्य मंदिर के द्वार पर स्थापित है। माता पार्वती और गणेश जी की मूर्ति भी मंदिर में स्थापित है। भगवान शिव के अलावा कई देवी देवताओं के मंदिर भी है जैसे यमुना देवी, सरस्वती देवी, अंबा मात, कालिका माता, विंध्यवासिनी देवी मंदिर है। एकलिंग मंदिर में एक विष्णु मंदिर है। इस मंदिर को लोग मीराबाई का मंदिर कहते हैं। मंदिर के चांदी के दरवाजों पर भगवान गणेश और भगवान कार्तिकेय की छवियाँ को देखा जा सकता है। मंदिर के दीवारों पर नृत्य करती नारियों की मूर्तियों का भी देखा जा सकता हैं।
जनश्रुति से यह भी ज्ञात होता है कि बप्पा रावल का गुरु नाथ हारीतराशि एकलिंग जी के मंदिर का महन्त था और उसी की शिष्य परंपरा ने मंदिर की पूजा आदि का कार्य सँभाला। एकलिंग जी के मंदिर के महंत, उक्त नाथों का एक प्राचीन मठ आज भी मंदिर के पश्चिम में बना हुआ है। बाद में नाथ साधुओं का आचरण भ्रष्ट हो जाने से मंदिर की पूजा आदि का कार्य गुसाइयों को सौंपा गया और वे उक्त मंदिर के मठाधीश हो गए। यह परंपरा आज भी चली आ रही है।
एकलिंग मंदिर के निर्माण काल व निर्माता के संबंध में कोई लिखित प्रमाण नहीं मिला है, परंतु जनश्रुति के अनुसार इसका निर्माण बप्पा रावल ने आठवीं शताब्दी के लगभग करवाया था। उदयपुर के महारणा मोकल ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था। वर्तमान मंदिर का संपूर्ण श्रेय महाराणा रायमल का है।
उक्त मंदिर की काले संगमरमर से निर्मित महादेव की चतुर्मुखी प्रतिमा की स्थापना महाराणा रायमल द्वारा की गई थी। मंदिर के दक्षिणी द्वार के समक्ष एक ताखे में महाराणा रायमल संबंधी 100 श्लोकों का एक प्रशस्तिपद लगा हुआ है।
एकलिंग मन्दिर परिसर के बाहर मन्दिर न्यास द्वारा स्थापित एक लेख के अनुसार डूंगरपुर राज्य की ओर से मूल बाणलिंग के इंद्रसागर में प्रवाहित किए जाने पर वर्तमान चतुर्मुखी लिंग की स्थापना की गई थी।