महाकालेश्वर मंदिर भगवान शिव को पूर्ण रूप से समर्पित है, इस मंदिर का नाम भारत के प्रसिद्ध मंदिरों में आता है। महाकालेश्वर मंदिर उज्जैन शहर जो कि भारत का एक प्राचीन शहर है, मध्य प्रदेश में स्थित है। यह मंदिर रुद्र सागर झील के किनारे पर स्थित है। इस मंदिर में विशाल दीवारों से घिरा हुआ एक बड़ा आंगन है। इस मंदिर के अंदर पाँच स्तर हैं और इनमें से एक स्तर भूमिगत है। इस मंदिर में ओंकारेश्वर महादेव लिंग मंदिर के ऊपर गर्भगृह में स्थिपित है और गणेश, माता पार्वती और कार्तिक की प्रतिमा पश्चिम, उत्तर और पूर्व गर्भगृह में स्थिपित है। भगवान शिव का वाहन अर्थात् नंदी की प्रतिमा दक्षिण में स्थित है।
उज्जैन शहर में महाकुंभ का आयोजन किया जाता है जो कि शिप्रा नदी मंे स्नान करके पूर्ण किया जाता है। भक्त महाकुंभ के दौरान शिप्रा नदीं में स्नान करने के पश्चात् महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन आवश्य करते है। शिप्रा नदीं महाकालेश्वर मंदिर से लगभग 800 मीटर के दूरी पर है।
महाकालेश्वर मंदिर भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंग में से एक है। यह बहुत प्रसिद्ध और बहुत बडा मंदिर है। यह भगवान शिव र्लिंग के रुप में विराजमान है। इस ज्योति लिंग की विशेषता यह है कि ये एक मात्र ऐसा शिव लिंग है जिसका मुख दक्षिण दिशा कि ओर है इसलिए इस मंदिर को दक्षिणामुखी महाकालेश्वर मंदिर भी कहा जाता है और यह शिव लिंग स्वयंभू है अर्थात् इस शिव र्लिंग की स्थापना नही कि गई, अपने आप हुई है। यह ज्योतिर्लिंग तांत्रिक कार्यो के लिए विशेष रुप से जाना जाता है।
महालेश्वर ज्योतिर्लिंग की स्थापना से संबन्धित के प्राचीन कथा प्रसिद्ध है, कथा के अनुसार एक बार अवंतिका नाम के राज्य में राजा वृ्षभसेन नाम के राजा राज्य करते थे। राजा वृ्षभसेन भगवान शिव के अन्यय भक्त थे, अपनी दैनिक दिनचर्या का अधिकतर भाग वे भगवान शिव की भक्ति में लगाते थे। एक बार पडौसी राजा ने उनके राज्य पर हमला कर दिया. राजा वृ्षभसेन अपने साहस और पुरुषार्थ से इस युद्ध को जीतने में सफल रहा। इस पर पडौसी राजा ने युद्ध में विजय प्राप्त करने के लिए अन्य किसी मार्ग का उपयोग करना उचित समझा, इसके लिए उसने एक असुर की सहायता ली। उस असुर को अदृश्य होने का वरदान प्राप्त था। राक्षस ने अपनी अनोखी विद्या का प्रयोग करते हुए अवंतिका राज्य पर अनेक हमले की, इन हमलों से बचने के लिए राजा वृ्षभसेन ने भगवान शिव की शरण लेनी उपयुक्त समझी। अपने भक्त की पुकार सुनकर भगवान शिव वहां प्रकट हुए और उन्होनें स्वयं ही प्रजा की रक्षा की। इस पर राजा वृ्षभसेन ने भगवान शिव से अंवतिका राज्य में ही रहने का आग्रह किया, जिससे भविष्य में अन्य किसी आक्रमण से बचा जा सके. राजा की प्रार्थना सुनकर भगवान वहां ज्योतिर्लिंग के रुप में प्रकट हुए, और उसी समय से उज्जैन में महाकालेश्वर की पूजा की जाती है।
उज्जैन राज्य में महाकाल मंदिर में दर्शन करने वाले भक्त ज्योतिर्लिंग के साथ साथ भगवान कि पूजा में प्रयोग होने वाली भस्म के दर्शन अवश्य करते है, अन्यथा श्रद्वालु को अधूरा पुन्य मिलता है. भस्म के दर्शनों का विशेष महत्व होने के कारण ही यहां आरती के समय विशेष रुप से श्रद्वालुओं का जमघट होता है। आरती के दौरान जलती हुई भस्म से ही यहां भगवान महाकालेश्वर का श्रंगार किया जाता है।
दक्षिणामुखी महाकालेश्वर मंदिर के निकट ही एक कुण्ड है। इस कुण्ड को कोटि कुण्ड के नाम से जाना जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस कुण्ड में कोटि-कोटि तीर्थों का जल है, अर्थात इस कुण्ड में अनेक तीर्थ स्थलों का जल होने की मान्यता है। इसी वजह से इस कुण्ड में स्नान करने से अनेक तीर्थ स्थलों में स्नान करने के समान पुन्यफल प्राप्त होता है। इस कुण्ड की स्थापना भगवान राम के परम भक्त हनुमान के द्वारा की गई थी।
महाकालेश्वर मंदिर में महाशिवरात्रि का त्यौहार बहुत ही धूम धाम से मनाया जाता है तथा बहुत बड़े मेले का भी आयोजन होता है।