बटेश्वर मंदिर हिन्दूओं का प्राचीन मन्दिरों को समूह है जो कि भारत के मध्य प्रदेश राज्य, ग्वालियर, मोरेना शहर से लगभग 30 किलोमीटर की दूसरी पर स्थित है। बेटेश्वर मंदिर के समूह में लगभग 200 बलुआ पत्थर से बने छोटे और बडे मंदिरों का एक समूह है। यह मंदिर अब खंडहरों बन चुके है। यह मन्दिरों का समूह लगभग 25 एकड जमीन पर फैला हुआ है। मध्यप्रदेश के पुरातत्व निदेशालय के अनुसार, 200 मंदिरों का यह समूह गुर्जरा-प्रतिहार वंश के शासनकाल के दौरान बनाया गया था। माना जाता है कि ये सभी मंदिर भगवान शिव, विष्णु और मां शक्ति को समर्पित है। इन मंदिरों के समूह की दीवारों पर कई देवी-देवताओं की मूर्तियों को भी देखा जा सकता है। यह स्थल चंबल नदी घाटी के किले के भीतर है, इसकी प्रमुख मध्ययुगीन युग विष्णु मंदिर के लिए जाना जाता पदावली के निकट एक पहाड़ी के उत्तर-पश्चिमी ढलान पर है। इन मंदिरों के समूह में सबसे बड़ा मंदिर भगवान शिव का है। यहां के स्थानीय लोग इस शिव मंदिर को भूतेश्वर के नाम से जानते है। इन मंदिरों के समूह को बटेश्वार मंदिर या बटेसरा मंदिर स्थल भी कहा जाता है।
यह मंदिरों का समूह 13वीं शताब्दी में नष्ट हो गये थे, अभी तक यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि भूकंप के कारण नष्ट हो थे या मुस्लिम आक्रमणों द्वारा नष्ट किये गये थे।
भारतीय मंदिर वास्तुकला के विशेषज्ञों द्वारा माना जाता है कि इन मंदिरों को निर्माण 750-800 वीं शताब्दी के बीच बनाये गये थे। 2005 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा एक परियोजना के अन्तर्गत कई मंदिरों का पुनः निर्माण किया गया था, जिनको अब देखा जा सकता है। इन मंदिरों का बनाने में सबसे महत्वपूर्ण कार्य के.के. मोहम्मद ने किया गया था। इन्होनें सभी टुकडों को जोड़कर दोबारा मंदिरों को निर्माण किया था, जो बहुत कठिन कार्य है। जो अब मध्यप्रदेश का मुख्य आकर्षण बन गया है।
गर्ड मेविसेन के अनुसार, बटेश्वर मंदिर परिसर में कई दिलचस्प दरवाजे और खिड़की को समर्थन देने वाली लकड़ी व पत्थर हैं, जैसे नवग्रह के साथ, कई वैष्णववाद परंपरा के दशावतार (विष्णु के दस अवतार), शक्तिवाद परंपरा से सप्तमात्रिक (सात माताओं) का विर्णन किया गया है। मेविसेन के अनुसार मंदिर परिसर का निर्माण 600 ईस्वी के बाद का होना चाहिए। साइट पर ब्रह्मवैज्ञानिक विषयों की विविधता बताती है कि बटेश्वर ,कभी ये क्षेत्र मंदिर से संबंधित कला और कलाकारों का केंद्र था।