पूर्णागिरी मन्दिर भारत के उत्तराखण्ड राज्य के टनकपुर में अन्नपूर्णा शिखर पर 3000 फुट की ऊँचाई पर स्थित है। यह मंदिर हिन्दूओं का प्रमुख मंदिर है तथा उत्तराखंड के प्रमुख शक्तिपीठ मंदिरों में से है। पूर्णागिरी मंदिर को महाकाली पीठ माना जाता है तथा यह 108 शक्तिपीठो में से एक है। यह स्थान चम्पावत से 92 कि॰मी॰की दूरी पर तथा टनकपुर से मात्र 18.6 कि॰मी॰की दूरी पर स्थित है। इस देवी दरबार की गणना भारत की 51 शक्तिपीठों में की जाती है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवी सती ने उनके पिता दक्षेस्वर द्वारा किये यज्ञ कुण्ड में अपने प्राण त्याग दिये थे, तब भगवान शंकर देवी सती के मृत शरीर को लेकर पूरे ब्रह्माण चक्कर लगा रहे थे इसी दौरान भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को 51 भागों में विभाजित कर दिया था, जिसमें से सती की नाभि इस स्थान पर गिरी थी।
पौराणिक कथा के अनुसार कि एक बार संतान विहीन सेठ को देवी ने सपने में कहा कि अगर तुम मेरे दर्शन करोगे तो तुमको पुत्र की प्राप्ति होगी। सेठ ने मां के दर्शन किये और कहा कि यदि उसको पुत्र होगा तो वह देवी के लिए सोने का मंदिर बनाएगा। सेठ की मनोकामना पूरी हुई, परन्तु सेठ लालची हो गया और सोने की जगह ताम्बे का मंदिर बनाया और मंदिर पर सोने की पोलिश करवा दी। देवी को अर्पित करने के लिए मंदिर की ओर जाने लगा. ”टुन्याश” नामक स्थान पर पहुचकर। वह ताम्बे के मंदिर को आगे नहीं ले जा सका। तब सेठ को उस मंदिर को उसी स्थान में रखना पडा। तब से वो मंदिर पौराणिक समय से वर्तमान में “झूठे का मंदिर” नाम से जाना जाता है।
पूर्णागिरी मंदिर के बारे में यह भी मान्यता है इस देवी की मंदिर पर बच्चे का मुंडन कराने से बच्चा दीर्घायु और बुद्धिमान होता है। इसलिए लाखो तीर्थ यात्री इस स्थान पर अपने बच्चे का मुंडन कराते है।
पूर्णागिरी मंदिर में सभी त्यौहार मनाये जाते है विशेष कर दुर्गा पूजा व नवरात्र के त्यौहार पर विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है। इस दिन मंदिर को फूलो व लाईट से सजाया जाता है। चैत्र मास की नवरात्रियों से दो माह तक यहॉ पर मेले का आयोजन किया जाता है। मंदिर का आध्यात्मिक वातावरण श्रद्धालुओं के दिल और दिमाग को शांति प्रदान करता है।