अट्टहास शक्तिपीठ हिन्दूओं के लिए प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है। यह मंदिर भारत के पश्चिम बंगाल के ‘लाबपुर’ में स्थित है। मंदिर पश्चिम बंगाल के पूरबा बर्धमान जिले के कटवा उपखंड में निरोल ग्राम पंचायत में स्थित है। यह निरोल बस स्टैंड से लगभग 5 किमी और ईशानी नदी (स्थानीय रूप से कंदोर नदी के रूप में जाना जाता है) के किनारे में स्थित है। अट्टा शब्द संस्कृत भाषा से लिया गया है जिसका अर्थ है ‘अत्यधिक हंसी’। अट्टहास शक्ति पीठ को फुल्लारा देवी मंदिर के नाम से भी कहा जाता है। यह मंदिर हिन्दू धर्म के शक्तिस्म (देवी की पूजा की जाती है) वर्ग के लोगों के लिए प्रमुख स्थान है।
अट्टहास शक्तिपीठ प्रकृति सौन्दर्य अद्वितीय है प्रकृति से प्रेम करने वाले के लिए यह स्थान एक आदर्श आकर्षक सप्ताहांत गंतव्य भी हो सकता था। यह मंदिर विभिन्न प्रजातियों के पक्षियों और पेड़ों के साथ जंगल के बीच स्थित ईशानी नदी के किनारे स्थित है।
ऐसा माना जाता है कि मंदिर के मुल मूर्ति 1915 तक इस मंदिर में थी। उसके बाद, मूल मूर्ति को ‘बांगिया साहित्य परिषद’ संग्रहालय में रखा गया था। यह मुर्ति धातु से बनी थी। मूर्ति की पुनः स्थापना के बाद, मूर्ति को लूट लिया गया था।
यह मंदिर माता के 51 शक्तिपीठों में से एक है। इस मंदिर में शक्ति को ‘फुल्लारा’ के रूप पूजा जाता है और भैरव को ‘ विशेश्वर’ के रूप में पूजा जाता है। पुराणों के अनुसार जहाँ-जहाँ सती के अंग के टुकड़े, धारण किए वस्त्र या आभूषण गिरे, वहाँ-वहाँ शक्तिपीठ अस्तित्व में आये। ये अत्यंत पावन तीर्थस्थान कहलाते हैं। ये तीर्थ पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में फैले हुए हैं।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवी सती ने उनके पिता दक्षेस्वर द्वारा किये यज्ञ कुण्ड में अपने प्राण त्याग दिये थे, तब भगवान शंकर देवी सती के मृत शरीर को लेकर पूरे ब्रह्माण चक्कर लगा रहे थे इसी दौरान भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को 51 भागों में विभाजित कर दिया था, जिसमें से सती का ‘नीचे का होठ’ इस स्थान पर गिरा था।
टेराकोट्टा का एक शिलालेख (शिला लिपी) अटहास में भी मिला है। इस शिलालेख की लिपी पर अनुसंधान अभी भी चल रहा है। यह उम्मीद की जाती है कि अगर इस शिलालेख को ठीक से पढ़ा जाए तो अटहास के बारे में सही जानकारी प्राप्त की जा सकती है।
अट्टहास शक्तिपीठ में सभी त्यौहार मनाये जाते है विशेष कर शिवरात्रि, दुर्गा पूजा और नवरात्र के त्यौहार पर विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है। इन त्यौहारों के दौरान, कुछ लोग भगवान की पूजा के प्रति सम्मान और समर्पण के रूप में व्रत (भोजन नहीं खाते) रखते हैं। त्यौहार के दिनों में मंदिर को फूलो व लाईट से सजाया जाता है। मंदिर का आध्यात्मिक वातावरण श्रद्धालुओं के दिल और दिमाग को शांति प्रदान करता है।