भाई दूज का त्योहार हिन्दूओं को प्रसिद्ध त्योहार है। यह त्योहार रक्षा बंधन के त्योहार के समान है। भाई दूज के त्योहार कई नामों से जाना जाता है जैसे भाबीज, भाई टीका, भाई फोंटा आदि। यह उत्सव विक्रम संवत हिंदू कैलेंडर या कार्तिक के शालिवाहन शाका कैलेंडर माह के शुक्ल पक्ष के दूसरे चंद्र दिवस (उज्ज्वल पखवाड़े) में मनाया जाता है। यह दिवाली के त्योहार के दूसरे दिन आता है।
इस दिन के उत्सव रक्षा बंधन के त्योहार के समान ही मनाया जाता हैं। इस दिन बहनें अपने भाइयों को उपहार देती हैं और छोटी बहन भी अपने बड़े भाइयों को उपहार देती हैं। भाई भी अपनी बहनों को उपहार देते हैं। देश के दक्षिणी भाग में, दिन को यम द्वितीया के रूप में मनाया जाता है।
भारत के उत्तर भाग में, एक अनुष्ठान भी किया जाता है, एक सूखा नारियल (जिसे क्षेत्रीय भाषा में गोला कहा जाता है) को क्लेवा से बांधा जाता है, बहनें अपने भाई की आरती करती हैं और भाई के माथे पर लाल टीका लगाती हैं। भाई दूज के अवसर पर यह टीका समारोह भाई की लंबी और खुशहाल जिंदगी के लिए बहन प्रार्थना करती है, सूखा नारियल अपने भाई को देती है। बदले में, बड़े भाई अपनी बहनों को आशीर्वाद देते हैं और उन्हें उपहार या नकद रुपये देते है।
पूरा समारोह अपनी बहन की रक्षा के लिए भाई के कर्तव्य को दर्शाता है, साथ ही अपने भाई के लिए बहन का आशीर्वाद भी।
2023 में कार्तिक शुक्ल द्वितीया तिथि 14 और 15 नवंबर दोनों को होगी। द्वितीया तिथि मंगलवार 14 नवंबर को दोपहर 02:36 बजे से शुरू होकर बुधवार 15 नवंबर को दोपहर 01:47 बजे समाप्त होगी. विद्वानों के अनुसार दोनों तिथियों में भाई दूज का पर्व मनाया जा सकता है। त्योहार मनाने से पहले दोनों दिनों का शुभ मुहूर्त जरूर देख लें।
ऐसा मान्यता है कि पूर्व काल में इस दिन देवी यमुना ने यमराज को अपने घर पर भोजन कराया था। उस दिन से नार के जीवों को यातना से छुटकारा मिला और वे पाप मुक्त हो गये थे और सभी ने अपनी इच्छा के अनुसार सन्तोषपूर्वक नरक में रहे। उन सब ने मिलकर एक महान् उत्सव मनाया जो यमलोक के राज्य को सुख पहुंचाने वाला था। इसीलिए यह तिथि तीनों लोकों में यम द्वितीया के नाम से विख्यात हुई।
जिस तिथि को यमुना ने यम को अपने घर भोजन कराया था, उस तिथि के दिन जो मनुष्य अपनी बहन के हाथ का उत्तम भोजन करता है उसे उत्तम भोजन समेत धन की प्राप्ति भी होती रहती है।
एक उच्चासन (मोढ़ा, पीढ़ी) पर चावल के घोल से पांच शंक्वाकार आकृति बनाई जाती है। उसके बीच में सिंदूर लगा दिया जाता है। आगे में स्वच्छ जल, 6 कुम्हरे का फूल, सिंदूर, 6 पान के पत्ते, 6 सुपारी, बड़ी इलायची, छोटी इलाइची, हर्रे, जायफल इत्यादि रहते हैं। कुम्हरे का फूल नहीं होने पर गेंदा का फूल भी रह सकता है। बहन भाई के पैर धुलाती है। इसके बाद उच्चासन (मोढ़े, पीढ़ी) पर बैठाती है और अंजलि-बद्ध होकर भाई के दोनों हाथों में चावल का घोल एवं सिंदूर लगा देती है। हाथ में मधु, गाय का घी, चंदन लगा देती है। इसके बाद भाई की अंजलि में पान का पत्ता, सुपारी, कुम्हरे का फूल, जायफल इत्यादि देकर कहती है - ‘यमुना ने निमंत्रण दिया यम को, मैं निमंत्रण दे रही हूं अपने भाई को, जितनी बड़ी यमुना जी की धारा, उतनी बड़ी मेरे भाई की आयु।’ यह कहकर अंजलि में जल डाल देती है। इस तरह तीन बार करती है, तब जल से हाथ-पैर धो देती है और कपड़े से पोंछ देती है। टीका लगा देती है। इसके बाद भुना हुआ मखान खिलाती है। भाई बहन को अपनी सामर्थ्य के अनुसार उपहार देता है। इसके बाद उत्तम पदार्थों का भोजन कराया जाता है।
छाया भगवान सूर्यदेव की पत्नी हैं जिनकी दो संतान हुई यमराज तथा यमुना. यमुना अपने भाई यमराज से बहुत स्नेह करती थी. वह उनसे सदा यह निवेदन करती थी वे उनके घर आकर भोजन करें. लेकिन यमराज अपने काम में व्यस्त रहने के कारण यमुना की बात को टाल जाते थे। अधिक पढ़ें...