राजस्थान के दौसा जिले के लालसोट से लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पर एक पहाड़ी की तलहटी में स्थित पपलाज माता का मंदिर न केवल स्थानीय लोगों बल्कि दूर-दराज से आने वाले श्रद्धालुओं के लिए आस्था और श्रद्धा का प्रमुख केंद्र है। इस मंदिर तक पहुंचने के लिए यात्रियों को लालसोट तक जाने की जरूरत नहीं होती। लालसोट के रास्ते में नांगल से एक मार्ग पपलाज माता के मंदिर की ओर जाता है। यहाँ श्रद्धालुओं का तांता हमेशा लगा रहता है, और चैत्र तथा आश्विन के नवरात्रों में यहां विशेष मेले का आयोजन होता है।
मंदिर में लोक गायक अपने मधुर गीतों से भक्तों को प्रेरित करते हैं, और माताजी को गेहूं, मखाने इत्यादि चढ़ाए जाते हैं। मंदिर के ठीक सामने लांगुरिया का मंदिर और पहाड़ी के मोड़ पर भैरव मंदिर भी स्थित है, जो धार्मिक महत्त्व को और बढ़ाते हैं।
अरावली पर्वत श्रृंखलाओं के बीच स्थित यह मंदिर अपनी प्राकृतिक सुंदरता और आध्यात्मिक ऊर्जा के लिए प्रसिद्ध है। स्थानीय ग्रामीण श्रद्धालुओं के लिए जलपान की भी व्यवस्था करते हैं, जिससे यहां आने वाले लोगों को सुविधा मिलती है। पपलाज माता के प्रति गहरी आस्था होने के कारण मेले के दौरान लाखों की संख्या में श्रद्धालु यहां पहुँचते हैं।
पपलाज माता का मंदिर न केवल दौसा जिले बल्कि पूरे राजस्थान में विख्यात है। पुरातत्व विभाग के अनुसार, यह मूर्ति लगभग 788 साल पुरानी है, जबकि जागा पोथी के अनुसार इसे 1100 साल पहले स्थापित किया गया था। इस मंदिर की मान्यता इतनी गहरी है कि गूंगे, बहरे, अंधे, लकवा ग्रस्त और अन्य पीड़ित लोग यहाँ अपनी मनौतियां मांगने आते हैं।
मंदिर के नीचे से निकलने वाला जलस्रोत जिसे "सपड़ावा" कहा जाता है, लोगों की मान्यता के अनुसार चर्मरोगों को ठीक करने में सहायक होता है। इस जलस्रोत का पानी श्रद्धालुओं के लिए एक आस्था का केंद्र है। इसके अलावा, मंदिर के पास स्थित वट वृक्ष को धरती का पहला वट वृक्ष माना जाता है, और यह भी बताया जाता है कि मेवाड़ के गवरी नृत्य की शुरुआत भी यहीं से हुई थी।
माता के दरबार में हर समय श्रद्धालुओं का आगमन रहता है, खासकर नवविवाहित जोड़े और नौकरी की मन्नत मांगने वाले लोग यहां पहुंचते हैं। यहां मान्यता है कि जो भी भक्त सच्चे दिल से मन्नत मांगता है, उसकी हर इच्छा पूरी होती है। जो दंपत्ति संतान प्राप्ति की कामना करते हैं, वे भी यहाँ आकर माता से आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
मंदिर के पास स्थित एक कुंआ, जिसे ज्यादा गहरा नहीं माना जाता, चमत्कारिक रूप से कभी सूखता नहीं है। यह कुंआ भी श्रद्धालुओं के बीच अत्यधिक पूजनीय है, और इसका पानी पीने और शरीर पर लगाने से चर्म रोगों से मुक्ति मिलने की मान्यता है।
पपलाज माता की पहाड़ियों पर दो करोड़ रुपए की लागत से लव कुश वाटिका का निर्माण किया जा रहा है, जिससे इस क्षेत्र को और भी सुंदर और पर्यटक अनुकूल बनाया जा सके। इस वाटिका में फलदार, फूलदार और औषधीय पेड़ लगाए जा रहे हैं, और इसे प्लास्टिक फ्री पॉलिसी के तहत विकसित किया जा रहा है। यहां एक हर्बल गार्डन भी बनाया जा रहा है, जो पर्यटकों के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र होगा।
पपलाज माता का मंदिर न केवल धार्मिक आस्था का प्रमुख केंद्र है, बल्कि यह स्थान प्राकृतिक सौंदर्य, लोक संस्कृति और इतिहास का अनूठा संगम भी है। इस मंदिर की मान्यताएँ और चमत्कारिक घटनाएँ इसे और भी महत्त्वपूर्ण बनाती हैं।