श्री दूधेश्वरनाथ महादेव मंदिर भगवान शिव को पूर्णतः समर्पित है। श्री दूधेश्वरनाथ महादेव मंदिर प्राचीन मंदिर है जोकि दिल्ली एनसीआर में बहुत प्रसिद्ध है। यह मंदिर भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के गाजियाबाद जिले में है जोकि दिल्ली एनसीआर की सीमा में आता है। ऐसा माना जाता है कि श्री दूधेश्वरनाथ महादेव मंदिर का इतिहास 5000 वर्ष पुराना है।
पौराणिक कथाओ के अनुसार हरनंदी (हिरण्यदा) नदी के किनारे हिरणयगर्भ में ज्योतिलिंग का वर्णन पुराणों में मिलता, जहां पुलस्त्य के पुत्र एवं रावण के पिता विश्वश्रवा ने घोर तपस्या की थी। इस मंदिर में रावण ने भी पूजा-अर्चना की थी। समय के साथ-साथ हरनंदी नदी का नाम खो गया। हिरण्यगर्भ ज्योतिर्लिंग ही दूधेश्वर महादेव मठ मंदिर में जमीन से साढ़े तीन फीट नीचे स्थापित स्वयंभू दिव्य शिवलिंग है।
इस मंदिर का मुख्य द्वार एक ही पत्थर को तराश कर बनाया गया है। दरवाजे के मध्य में गणेश जी विद्यमान है जिन्हें इसी पत्थर को तराश कर बनाया गया है। कुछ लोगों का मानना है कि इस मंदिर को छत्रपति शिवाजी महाराज ने बनवाया था।
श्री दूधेश्वरनाथ महादेव मंदिर के लिए एक लोक कथा प्रचलित है कि पास ही के गावं कैला की गायें जब यहां घास आदि चरने के लिए आती थी तब टीले के ऊपर पहुंचने पर स्वतः ही दूध गिरने लगता था। इस घटना को देख गावं वालों ने जब इस टीले की खुदाई की तो उन्हें वहां शिवलिंग मिला जो मंदिर में स्थापित है। गायों के स्वतः दूध गिरने के कारण इस मंदिर व शिव लिंग नाम दूधेश्वर या दुग्धेश्वर महादेव रखा गया था।
इस मंदिर में हर समय एक धूना जलती रहती है, जिसके बारे में कहा जात है कि यह कलयुग में महादेव के प्रकट होने के समय से ही जलती आ रही है। यहां एक कुआं भी है, जिसके पानी का स्वाद कभी मीठा तो कभी गाय के दूध जैसा हो जाता है।
यहां गौशाला भी है जिसके बारे में कहा जाता है कि यहा रहने वाल गाये ‘लम्बो गाय’ है जो उन गायों की ही वंशज है जिन गायों का दूध अपने आप शिव लिंग पर गिरा करता था। इस मंदिर के आँगन में औषधालय भी है, जिसका उद्देश्य आयुर्वेद से गरीबों का मुफ्त इलाज करना है।
यहां वेद विद्यापीठ भी है, जिसकी स्थापना श्री शंकराचार्य जयंती वर्ष 2002 में की गई थी। इसके अंतर्गत मंदिर आँगन में बीस कक्षाओं वाली श्री दूधेश्वर विद्यापीठ का शुभारंभ हुआ। इस विद्यापीठ में पूरे भारत भर से आये पचास से अधिक छात्र गुरुकुल परंपरा के अनुसार विद्या अध्ययन करते हैं। यहां एक समृद्ध पुस्तकालय भी है, जिसमें लगभग आठ सौ से भी अधिक ग्रन्थ मौजूद हैं।
सावन के महीने में यहां भक्तों की भारी भीड़ जुटी रहती है। दूर-दूर से कांवड़ लेकर आने वाले भक्त दूधेश्वर मंदिर में भगवान शिव की पूजा करते हैं और गंगाजल चढ़ाते हैं। शिवरात्रि का त्यौहार के अवसर पर भक्त भारी संख्या में दूधेश्वर महादेव के दर्शनों के लिए आते है। शिवरात्रि का त्यौहार को विशेष तौर मानाया जाता है।