माँ ज्वाला जी मंदिर भारत का प्राचीन मंदिर है जो कि ज्वालामुखी शहर, कांगड़ा जिले, हिमाचल प्रदेश तथा हिमालय के निचले क्षेत्र में स्थित है। ज्वाला जी का मंदिर ज्वालामुखी मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। ज्वाला जी मंदिर ज्वाला माँ को समर्पित है। ज्वाला जी मंदिर धर्मशाला से 55 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। ज्वाला जी मंदिर 51 सिद्व पीठों में से एक है। ज्वाला जी मंदिर में अलग-अगल स्थान व चटानों पर 9 ज्योति प्रज्वलित रहती है जो कि बिना किसी ईधन के हमेशा प्रज्वलित रहती है, इसलिए यह मंदिर पूरी दुनिया में ‘माँ ज्वाला जी’ के नाम से प्रसिद्ध है। इन ज्योति के दर्शनों के लिए भक्त पूर भारत से आते है। नव राात्रि के त्यौहार के दौरान बड़ी संख्या में लोग दर्शनों के लिए मंदिर में आते है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवी सती ने उनके पिता दक्षेस्वर द्वारा किये यज्ञ कुण्ड में अपने प्राण त्याग दिये थे, तब भगवान शंकर देवी सती के मृत शरीर को लेकर पूरे ब्रह्माण चक्कर लगा रहे थे इसी दौरान भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को 51 भागों में विभाजित कर दिया था, जिसमें से सती की जीभ इस स्थान गिर गई थी ये सभी ज्योतियां उसी का प्रतिनिधित्व कर रही है।
ऐसा माना जाता है , कि सतयुग में सम्राट भूमिचन्द्र ने ऐसा अनुमान लगाया कि भगवती सती की जीभ कटकर हिमालय के धोइलिधर पर्वतो पर गिरी थी । काफी प्रयत्न के बाद भी वो उस स्थान को नहीं ढुँढ़ सके। इसके बाद उन्होंने नगरकोट - कागड़ा में एक भगवान सती के नाम से एक मंदिर बनवाया। कुछ वर्षो बाद कुछ लोगो ने महाराजा भुमिचंद्र को सुचना दी की उसके एक पर्वत पर ज्वाला निकलते हुए देखी है। सुचना पाकर महाराज वहा पहुचे और उसकी पूजा की। साथ ही साथ उस स्थान पर एक मंदिर का निर्माण कराया। और मंदिर में पूजा के लिये दो पवित्र साधुओ को बुलाया गया और उन्हें पूजा का अधिकार दिया गया। इनके नाम पंडित श्री धर तथा पंडित कमलापति थे। ऐसा माना जाता है की उन्ही के वंशज आज भी मंदिर में पूजा कराते है। ऐसा कहा जाता है कि पांडव ने भी ज्वाला जी की यात्रा की थी और मंदिर का पुनः निर्माण कराया ।
श्री ज्वाला जी देवी मंदिर में देवी के ज्योति के रूप नव रूप के दर्शन होते है। ये ज्योति कभी कम या कभी अधिक भी होती रहती है। ऐसा माना जाता है कि नवदुर्गा ही 14 भुवनो की रचना करने वाली है। जिनके सेवक-सत्व, रज और तम तीन गुण है। इसके अलावा मंदिर के दरवाजे के सामने चांदी के आले में जो ज्योति है, उसे महाकाली का रूप कहा जाता है। यह ब्रहम ज्योति है तथा मुक्ति व भुक्ति देने वाली है। शेष ज्योतियों के पवित्र नाम व दर्शन इस प्रकार है -
गोरख डिब्बी - यह बहुत पवित्र स्थान है यहाँ पर एक छोटे से कुण्ड में जल हमेशा खोलता रहता है ,जो देखने में काफी गरम लगता है, पर माँ की कृपा से वह जल ठंडा होता है। इस स्थान की एक अनोखी बात यह भी है कि छोटे कुण्ड के उपर धुप की जलती ज्योति दिखाने पर जल के उपर एक बड़ी ज्योति प्रकट हो जाती है। इसे ‘रूद्र कुण्ड’ भी कहा जाता है। यह स्थान ज्वाला जी मंदिर की परिक्रमा में कुछ उपर की ओर है। कहा जाता है कि यहाँ पर गुरु गोरखनाथ जी ने तपस्या की थी। वह अपने शिष्य सिद्ध -नागार्जुन के पास डिब्बी धर कर खिचड़ी मांगने गए परन्तु खिचड़ी लेकर वापस नहीं आये और डिब्बी का जल गर्म नहीं हुआ।
शयन भवन- यह भगवती माँ के शयन का स्थान है जहा पर माता विश्राम करती है। भवन में प्रवेश करते ही भवन के बीचो- बीच संगमरमर का पलंग बना हुआ है, जिसके उपर चांदी लगी हुई है। रात 10 बजे शयन आरती के बाद भगवती के शयन के लिये कपड़े और श्रृगार का सामान और साथ में पानी का लोटा और दातुन आदि सामान रखा जाता है। शयन भवन में चारो ओर महादेवियो और महाकलियो, महालक्ष्मी और सरस्वती की मूर्तियाँ बनी है। इसके साथ ही श्री गुरु गोविन्द सिंह जी की दी हुए श्री गुरु ग्रन्थ साहिब की हस्तलिखित प्रतिलिपि भी शयन -भवन में सुरक्षित है।
श्री राधा कृष्णा मंदिर - गोरख डिब्बी के पास में ही राधा कृष्णा का एक छोटा सा मंदिर है। ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर को कटोच राजाओ ने बनवाया था।
लाल शिवालय - गोरख डिब्बी से कुछ उपर चढने पर शिव शक्ति और फिर लाल शिवालय के दर्शन होते है। शिव शक्ति में शिवलिंग के साथ ज्योति के दर्शन भी होते है। लाल शिवालय भी बहुत सुन्दर दर्शनीय मंदिर है। जिसकी शोभा देखने लायक है।
सिद्ध नागार्जुन - यह पवित्र स्थान लाल शिवालय से कुछ उपर पडता है। यहाँ पर एक काले रंग की मूर्ति है। इस मूर्ति को सिद्ध नागार्जुन कहते है। इसके बारे में एक कहानी प्रसिद है कि जब गुरु बाबा गोरखनाथ जी काफी देर हो जाने के बाद भी वापस नहीं आये तो उनके शिष्य नागार्जुन ने पहाड़ी पर चड़कर उन्हें देखने लगे की गुरु जी कही दिख तो नहीं रहे है। परन्तु यह स्थान नागार्जुन को इंतना पसंद आया की वह उस स्थान पर ही समाधि लगाकर बैठ गए।
अम्बिकेश्वर महादेव - सिद्ध नागार्जुन से कुछ दुरी पर ही पूर्व की ओर यह मंदिर है। इस स्थान को उन्मत भेरव भी कहते है । श्री शिव महापुराण की पीछे लिखी कथा के अनुसार जहा-तहा भी सती के अंग-प्रत्यंग गिरे, उस-उस स्थान पर शिव जी ने किसी न किसी रूप में निवास किया। यह मंदिर अम्बिकेश्वर महादेव के नाम से प्रसिद्ध है ।
टेढ़ा मंदिर - अम्बिकेश्वर महादेव से कुछ ही दुरी पर एक मंदिर में सीताराम जी के दर्शन होते है। कहा जाता है कि एक भूचाल आने पर पूरा मंदिर टेढा हो गया था, परन्तु माँ की कृपा से यह मंदिर गिरा नहीं। आज भी यह मंदिर देखने में टेढा ही दिखता है इसलिये इस मंदिर को लोग टेढ़ा मंदिर के नाम से जानते है।
मार्ग परिचय- माँ ज्वाला जी का स्थान हिमाचल प्रदेश के कागड़ा जिले में स्थित है । यहाँ पर लोग पूरे भारत से आते है । यहाँ पर पंजाब राज्य में जिला होशियारपुर से गोरीपुर डेरा होते हुए बसे ज्वाला जी पहुचती है । यहाँ से माँ का स्थान लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पर है । इसके अलावा पठानकोट से कागड़ा होते हुए भी यात्री ज्वाला माँ के मंदिर पहुच सकते है । बस से कागड़ा से ज्वाला माँ के मंदिर का रास्ता लगभग 2 घंटे का समय लगता है । यहाँ से नियमत अन्तराल पर बस आती रहती है।