त्रियुगीनारायण मंदिर एक हिंदू मंदिर है जो भारत के राज्य उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले के त्रियुगीनारायण गांव में स्थित एक हिंदू मंदिर है। त्रियुगीनारायण मंदिर भगवान विष्णु का पूर्णतयः समर्पित है परन्तु यह मंदिर भगवान शिव और पार्वती के विवाह के स्थल के रूप में प्रसिद्ध है। इस मंदिर में भगवान विष्णु (नारायण) की 2 फुट की प्रतिमा है, साथ में - धन की देवी लक्ष्मी और ज्ञान की देवी - सरस्वती हैं । त्रियुगीनारायण मंदिर, हिन्दू धर्म में एक लोकप्रिय व महत्वपूर्ण तीर्थस्थल है।
‘त्रियुगीनारायण’ तीन शब्दों से मिलकर बना है। इन शब्दों का अर्थ हैः- ‘त्रि’ का अर्थ है तीन है। ‘युगी’ का अर्थ समय की अवधि को दर्शाता है। युग और नारायण भगवान विष्णु का एक नाम है। इसलिए इस स्थान को ‘त्रियुगी नारायण’ नाम दिया गया है। सनातन धर्म में युग को समय के चार अवधि में बताया गया है। ये चार युग हैः- सत्य युग, त्रेता युग, द्वापर युग और अंत में कलयुग है जो वर्तमाना युग है।
त्रियुगिनारायण मंदिर की वास्तुकला शैली केदारनाथ मंदिर जैसी है। यह मंदिर बिल्कुल केदारनाथ मंदिर जैसा ही दिखता है और इसलिए बहुत से भक्तों को आकर्षित करता है। वर्तमान मंदिर को अखण्ड धूनी मंदिर भी कहा जाता है। माना जाता है कि यह आदि शंकराचार्य द्वारा बनाया गया है। उत्तराखंड क्षेत्र में कई मंदिरों के निर्माण के साथ आदि शंकराचार्य को श्रेय दिया जाता है। मंदिर में भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की चांदी की 2 फुट की मूर्ति है।
हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवती पार्वती जो कि हिमावत या हिमालय की बेटी थी। देवी पार्वती ने भगवान शिव की पहली पत्नी सती का पुर्नजन्म लिया था। - जिसने अपने पिता को शिव का अपमान करते हुए अपना जीवन त्याग दिया। माता पार्वती ने भगवान शिव से शादी करने के लिए कठोर तपस्या की ताकि भगवान शिव को पति के रूप में पा सके।
भगवान विष्णु ने शादी को औपचारिक रूप दिया था और समारोहों में पार्वती के भाई के रूप में कार्य किया, भगवान ब्रह्मा जी ने शादी में एक पुजारी के रूप में कार्य किया था। सभी ऋषियों की उपस्थिति में विवाह सम्पन्न किया गया था। शादी के सही स्थान को मंदिर के सामने ब्रह्मा शिला नामक पत्थर द्वारा चिह्नित किया जाता है। इस स्थान की महानता को स्थल-पुराण में देखा गया है। पवित्रशास्त्र के मुताबिक, इस मंदिर में जाने वाले तीर्थयात्रियों को अग्नि कुण्ड की राख को पवित्र मानते हैं और इसे अपने साथ ले जाते हैं। यह भी माना जाता है कि यह राख वैवाहिक जीवन को आनंद से भरता है।
त्रियुगीनारायण मंदिर की विशेषता यह है कि मंदिर के सामने अखंड ज्योति जलती रहती है। इसलिए मंदिर को ‘अखंड धूनी मंदिर’ के नाम से भी जाना जाता है। माना जाता है कि दिव्य ज्योति भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह के समय से जलती आ रही है। यह दिव्य ज्योति तीन युगों से जल रही है इसलिए इस मंदिर का नाम त्रियुगी हो गया था।
विवाह में सभी संत-मुनियों ने इस समारोह में भाग लिया था। विवाह स्थल के नियत स्थान को ब्रहम शिला कहा जाता है जो कि मंदिर के ठीक सामने स्थित है। इस मंदिर के महात्म्य का वर्णन स्थल पुराण में भी मिलता है।
त्रियुगीनारायण मदिर के अहाते में सरस्वती गङ्गा नाम की एक धारा का उद्गम हुआ है। इसी धारा से पास के सारे पवित्र सरोवर भरते हैं। सरोवरों के नाम रुद्रकुण्ड, विष्णुकुण्ड, ब्रह्मकुण्ड व सरस्वती कुण्ड हैं। रुद्रकुण्ड में स्नान, विष्णुकुण्ड में मार्जन, ब्रह्मकुण्ड में आचमन और सरस्वती कुण्ड में तर्पण किया जाता है।
माता पार्वती हिमालय की पुत्री थी, जो हिमावत के राजा थे। त्रियुगीनारायण स्थान हिमावत की राजधानी थी।
वेदों में उल्लेख है कि यह त्रियुगीनारायण मंदिर त्रेतायुग से स्थापित है। जबकि केदारनाथ व बदरीनाथ द्वापरयुग में स्थापित हुए। यह भी मान्यता है कि इस स्थान पर विष्णु भगवान ने वामन देवता का अवतार लिया था। यहां विष्णु भगवान वामन देवता के रूप में पूजे जाते हैं।
श्रद्धालु इस पवित्र त्रियुगीनारायण मंदिर की यात्रा करते हैं वे यहां प्रज्वलित अखंड ज्योति की भभूत अपने साथ ले जाते हैं ताकि उनका वैवाहिक जीवन शिव और पार्वती के आशीष से हमेशा मंगलमय बना रहे।