चण्डी देवी मंदिर का चण्डी देवी को समर्पित है। चण्डी देवी मंदिर को चण्डिका देवी मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। चण्डी देवी मंदिर देव भूमि हरिद्वार उत्तरांखड राज्य में स्थित है। यह मंदिर हरिद्वार मंे स्थित ‘हर की पौरी’ से चार किमी की दूरी पर है। यह हिमालय के दक्षिणी पर्वत श्रृंखला के पूर्वी शिखर पर नील पर्वत के चोटी पर स्थित है। मंदिर में चण्डी देवी की मूर्ति हिन्दूओं के महान संत शंकरचार्य ने आंठवी शताब्दी में स्थापित करी थी। यह मंदिर 53 शक्तिपीठों में से एक है तथा हरिद्वार के पांच तीर्थ स्थलों में से एक है। इस मंदिर को कश्मीर के एक राजा सुचत सिंह द्वारा 1929 में पुनः बनवाया गया था। यात्री इस स्थान तक टेªकिंग के रास्ते पहुंच सकते है जो लगभग 3 किमी है तथा (केबल कार) रोपवे सेवा के द्वारा भी जाया जा सकता है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, दो राक्षस थे शुंभ और निशुंभ, दोनों राक्षसों ने इन्द्र देवता के राज्य स्वर्ग पर कब्जा कर लिया था। इन्द्र ने देवी पार्वती से प्रार्थना कि तब देवी पार्वती ने चण्डिका का रूप धारण किया। राक्षस शुंभ ने देवी कि सुन्दरता से आकर्षित होकर देवी से विवाह करने की कामना की परन्तु देवी ने मना कर दिया। तब राक्षस शुंभ ने देवी से लड़ाई के लिए अपने दो प्रमुख राक्षस चंद और मुण्ड को भेजा। देवी चण्डिका के हाथों दोनों राक्षस चंद और मुण्ड मारे गए थे। चंद और मुण्ड के मरने के बाद शुंभ और निशुंभ दोनों ने मिलकर चण्डी देवी से युद्ध किया परन्तु दोनों ही देवी के हाथों मारे गए थे। युद्ध के बाद देवी ने थोड़ी देर नील पर्वत पर विश्राम किया था। बाद में इस जगह पर चण्डी देवी का मंदिर बनाया गया था। इसके अलावा, पर्वत श्रृंखला दो चोटियों को शुंभ और निशुंभ कहा जाता है।