यह मंदिर उत्तराखंड के नैनीताल में नैनी झील के उत्तरी किनारे पर नैना पहाड़ी के ऊपर स्थित है। इस मंदिर के प्रमुख देवता मां नैना देवी हैं, जिनका प्रतिनिधित्व दो नेत्रों या आंखों द्वारा किया जाता है। नैनीताल 64 शक्तिपीठों में से एक है, जिसे हिंदू धर्म के धार्मिक स्थलों के रूप में भी जाना जाता है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवी सती ने उनके पिता दक्षेस्वर द्वारा किये यज्ञ कुण्ड में अपने प्राण त्याग दिये थे, तब भगवान शंकर देवी सती के मृत शरीर को लेकर पूरे ब्रह्माण चक्कर लगा रहे थे इसी दौरान भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को 51 भागों में विभाजित कर दिया था, जिसमें से सती की आँखें (नैना) इस स्थान गिरी थी। । नैना देवी का मंदिर उस स्थान पर बनाया गया है जहाँ देवी की आँखें (नैना) गिरी थी।
माना जाता है कि एक प्राचीन मंदिर 15 वीं शताब्दी में बनाया गया था, जिसका निर्माण 1883 में हुआ था। मंदिर के पीछे 167 गज चौड़ा और 93 फीट गहरा एक तालाब है। मंदिर का द्वार बाईं ओर विशाल पीपल के पेड़ से चिह्नित है। दायीं ओर भगवान हनुमान और भगवान गणेश की मूर्तियाँ हैं। मंदिर के अंदर माता काली देवी, मां नैना देवी और भगवान गणेश की मूर्तियां स्थापित हैं। भाद्रपद शुक्ल अष्टमी पर हर साल 1918-19 के बाद से महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल में मनाए जाने वाले उत्सव के समान प्रतिमा विसर्जन समारोह यहां किया जाता है।