पंच सागर शक्तिपीठ हिन्दूओं के लिए प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है। यह मंदिर भारत के उत्तर प्रदेश राज्य, वाराणसी में स्थित है। पंच सागर मंदिर में माता का वाराही के रूप में पूजा जाता है। हिन्दू धर्म में वाराही माता को तीनों वर्ग में पूजा की जाती है शक्तिस्म (देवी की पूजा की जाती है), शैवीस्म (भगवान शिव की पूजा की जाती है) और वैष्णवीस्म (भगवान विष्णु की पूजा की जाती है)। पुराणों में भी वाराही का वर्णन किया गया है।
मंदिर की वास्तुकला आराध्य है इस मंदिर के निर्माण में उपयोग किया गया पत्थर वास्तव में अलग है यह पत्थर सूर्य की रोशनी में चमकता है। इस मंदिर की मुख्य विशेषता यह है कि मंदिर सिर्फ सुबह दो घण्टे के लिये खुलता है। मंदिर पूरे दिन बंद रहता है। ऐसा माना जाता है कि रात के समय देवी वाराही वाराणसी की रक्षा करती है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार वाराही शब्द को शक्ति के रूप में जाना जाता है। एक ओर मान्यता है कि वाराही शब्द भगवान विष्णु के वराहावतार से भी प्रेरित है।
यह मंदिर माता के 51 शक्तिपीठों में से एक है। इस मंदिर में शक्ति को ‘वाराही’ के रूप पूजा जाता है और शिव को ‘महारुद्र’ के रूप में पूजा जाता है। महारुद्र’ का अर्थ है गुस्सा वाला अवतार। पुराणों के अनुसार जहाँ-जहाँ सती के अंग के टुकड़े, धारण किए वस्त्र या आभूषण गिरे, वहाँ-वहाँ शक्तिपीठ अस्तित्व में आये। ये अत्यंत पावन तीर्थस्थान कहलाते हैं। ये तीर्थ पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में फैले हुए हैं।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवी सती ने उनके पिता दक्षेस्वर द्वारा किये यज्ञ कुण्ड में अपने प्राण त्याग दिये थे, तब भगवान शंकर देवी सती के मृत शरीर को लेकर पूरे ब्रह्माण चक्कर लगा रहे थे इसी दौरान भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को 51 भागों में विभाजित कर दिया था, जिसमें से सती की नीचे के दांत इस स्थान पर गिरे थे।
पंच सागर शक्तिपीठ में सभी त्यौहार मनाये जाते है विशेष कर शिवरात्रि, दुर्गा पूजा और नवरात्र के त्यौहार पर विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है। त्यौहार के दिनों में मंदिर को फूलो व लाईट से सजाया जाता है। मंदिर का आध्यात्मिक वातावरण श्रद्धालुओं के दिल और दिमाग को शांति प्रदान करता है।