सञ्जय उवाच ।
दृष्ट्वा तु पाण्डवानीकं व्यूढं दुर्योधनस्तदा ।
आचार्यमुपसङ्गम्य राजा वचनमब्रवीत् ।।
"सैन्य गठन में खड़े पांडव सेना को देखते हुए, राजा दुर्योधन ने अपने शिक्षक द्रोणाचार्य से संपर्क किया, और निम्नलिखित शब्द बोले।"
यह श्लोक महाभारत के युद्ध की शुरुआत में गीता के प्रथम अध्याय का दूसरा श्लोक है। यह श्लोक महाभारत के युद्ध के प्रारंभिक क्षणों का वर्णन करता है। इसमें दुर्योधन का चरित्र, उसकी मानसिकता और उसके आचरण को समझने का अवसर मिलता है।
दृष्ट्वा – देखकर, अवलोकन करना;
तु - और;
पाण्डवानीकं — पांडव की सेना;
व्यूढं — व्यूहरचनायुक्त, एक सैन्य गठन में समझ;
दुर्योधन — दुर्योधन;
तदा —उस समय;
आचार्यम् — शिक्षक;
उपसङ्गम्य —पास जाकर;
राजा — राजा;
वचनाम — वचन;
अब्रवीत् — कहा