भगवद गीता अध्याय 6, श्लोक 36

यह श्लोक भगवद गीता, अध्याय 6, श्लोक 36 से है। यह संस्कृत में लिखा गया है और हिंदी में इसका अनुवाद इस प्रकार है:

असंयतात्मना योगो दुष्प्राप इति मे मति: |
वश्यात्मना तु यतता शक्योऽवाप्तुमुपायत: || 36 ||

हिंदी अनुवाद है:

 "जिसका मन और इंद्रियां असंयमित हैं, वह योग की प्राप्ति नहीं कर सकता। लेकिन जिसने अपने मन को वश में कर लिया है और प्रयासरत है, वह उचित साधनों के द्वारा योग को प्राप्त कर सकता है।"

व्याख्या विस्तार से:

यह श्लोक हमें बताता है कि योग और ध्यान का मार्ग केवल उन्हीं के लिए संभव है जो अपने मन और इंद्रियों को नियंत्रित करते हैं। आत्मसंयम, अनुशासन और सतत प्रयास से कोई भी व्यक्ति इस मार्ग पर सफलता प्राप्त कर सकता है। जीवन में संयम और संतुलन बनाए रखना ही योग और आध्यात्मिकता की कुंजी है।

श्रीकृष्ण के इस उपदेश को अपनाकर हम अपने जीवन को सफल और सार्थक बना सकते हैं।

असंयमित मन:

  • असंयमित मन व्यक्ति को भटकाता है।
  • इंद्रियों के अधीन व्यक्ति अपनी ऊर्जा को व्यर्थ कार्यों में खर्च करता है।
  • ऐसा व्यक्ति कभी ध्यानस्थ नहीं हो सकता और योग से दूर रहता है।

संयमित और वश में किया हुआ मन:

  • जो अपने मन और इंद्रियों को नियंत्रित करता है, वह योग के पथ पर चल सकता है।
  • ऐसे व्यक्ति में शांति, एकाग्रता, और आध्यात्मिक जागरूकता होती है।
  • यह आत्मसंयम साधना और योग की प्रगति का आधार है।

संस्कृत शब्द का हिंदी में अर्थ:

असंयतात्मना -जिसका मन वश में नहीं है।
योगो - योग।
दुष्प्राप - कठिनाई से प्राप्त होने वाला।
इति - इस प्रकार।
मे - मेरा।
मति - विचार।
वश्यात्मना - जिसका मन वश में है।
तु - लेकिन।
यतता - प्रयत्नशील व्यक्ति।
शक्य - संभव।
अवाप्तुम् - प्राप्त करने के लिए।
उपायत - उपाय के द्वारा।


अध्याय 6



मंत्र






2024 के आगामी त्यौहार और व्रत











दिव्य समाचार











Humble request: Write your valuable suggestions in the comment box below to make the website better and share this informative treasure with your friends. If there is any error / correction, you can also contact me through e-mail by clicking here. Thank you.

EN हिं